
डिफेंस टेक्नोलॉजी में क्रांति: भारत में बन रहा पहला ड्यूल स्टेल्थ ड्रोन, 'रामा' कवच से राडार और इंफ्रारेड सिस्टम भी होंगे फेल
नई दिल्ली। भारत की रक्षा तकनीक एक और नई ऊंचाई पर पहुंचने जा रही है। देश में पहली बार एक ड्यूल स्टेल्थ टेक्नोलॉजी वाला अत्याधुनिक ड्रोन विकसित किया जा रहा है, जो न सिर्फ दुश्मन के राडार बल्कि इंफ्रारेड डिटेक्शन सिस्टम से भी पूरी तरह से बच निकलने में सक्षम होगा। इस ड्रोन पर लगाया जाएगा ‘रामा कवच’, जो इसे अदृश्य बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
इस प्रोजेक्ट पर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और देश की अग्रणी एयरोस्पेस कंपनियां मिलकर काम कर रही हैं। ‘रामा’ तकनीक को भारत में ही विकसित किया गया है और इसका पूरा नाम है: Radiation Attenuating Material Application। यह एक विशेष प्रकार की कोटिंग है, जो ड्रोन की सतह पर लगाई जाती है और उसे राडार की तरंगों और इंफ्रारेड सिग्नल दोनों से छिपाने में मदद करती है।
क्या है ड्यूल स्टेल्थ टेक्नोलॉजी?
सामान्य रूप से, स्टेल्थ तकनीक केवल राडार से बचने में सहायक होती है। लेकिन ड्यूल स्टेल्थ तकनीक में एक साथ दो स्तरों की सुरक्षा होती है – राडार अवॉइडेंस और इंफ्रारेड अवॉइडेंस। इसका मतलब है कि ड्रोन दुश्मन के थर्मल और विजुअल ट्रैकिंग सिस्टम दोनों से बच निकलने में सक्षम होगा। इससे यह किसी भी हाई रिस्क मिशन में उपयोग के लिए आदर्श बन जाता है।
‘रामा’ कवच क्यों है खास?
‘रामा’ एक मल्टीलेयर, नैनो-मैटेरियल बेस्ड कोटिंग है जो ड्रोन की सतह पर अप्लाई की जाती है। यह न केवल राडार सिग्नल को एब्जॉर्ब करती है, बल्कि इंफ्रारेड सिग्नेचर को भी कम कर देती है। यानी, दुश्मन की नजरों में यह ड्रोन लगभग अदृश्य बन जाता है।
कब तक हो सकता है तैयार?
सूत्रों के अनुसार, इस मेड इन इंडिया स्टेल्थ ड्रोन का प्रोटोटाइप अगले 8–12 महीनों में तैयार कर लिया जाएगा। प्रारंभिक परीक्षणों के बाद इसे भारतीय वायुसेना और नौसेना के लिए उपलब्ध कराया जाएगा।
वैश्विक स्तर पर भारत का कद बढ़ेगा
इस ड्यूल स्टेल्थ ड्रोन के निर्माण से भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा जो इस उन्नत टेक्नोलॉजी का विकास कर चुके हैं। यह रक्षा निर्यात के क्षेत्र में भी भारत के लिए एक बड़ा अवसर बन सकता है।