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लखनऊ प्रदर्शन में आशा बहुओं का विरोध, बोलीं- जीना मुश्किल है

लखनऊ प्रदर्शन में आशा बहुओं का विरोध, बोलीं- जीना मुश्किल है

लखनऊ में 20 हजार आशा वर्कर्स का प्रदर्शन, सरकार पर फूटा गुस्सा

लखनऊ के इको गार्डन में सोमवार को लगभग 20 हजार आशा वर्कर्स इकट्ठा हुईं।उनकी मांगें — बकाया मानदेय, स्थायी नौकरी, बीमा सुरक्षा, न्यूनतम वेतन और सम्मानजनक कार्य परिस्थितियाँ — को लेकर आवाज़ बुलंद की गई।“पेट्रोल डालकर खुद को फूंक लेंगे, सीएचसी-पीएचसी सेंटर के सामने आत्महत्या कर लेंगे,” — यह दर्द भरे शब्द थे उन आशा बहुओं के जो दिन-रात काम करने के बावजूद महीने के ₹3,000 से भी कम वेतन पा रही हैं।
उनका कहना है, “सरकारी टॉर्चर से परेशान हैं, अधिकारी सिर्फ पैसे खाते हैं। अबकी बार वोट नहीं देंगे।”

‘₹100 रुपए में घर नहीं चलता, त्योहार नहीं मना पाते’

प्रयागराज, अयोध्या, बरेली, वाराणसी और लखनऊ समेत कई जिलों से आईं आशा कार्यकर्ताओं ने बताया कि चार महीने से वेतन नहीं मिला है।मीरा, जो 2013 से सेवाएं दे रही हैं, ने कहा —“दीवाली-होली जैसे त्योहार हमारे लिए दुख का कारण बन गए हैं। बच्चों की ख्वाहिशें पूरी नहीं कर पाते। पैसे न होने के कारण मिठाई या कपड़े तक नहीं खरीद पाते।”उन्होंने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से निवेदन किया कि आशा बहुओं की समस्याओं का स्थायी समाधान किया जाए।

‘काम 4 से बढ़कर 54, लेकिन मानदेय नहीं बढ़ा’

आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब उन्होंने काम शुरू किया था, तब केवल 4 कार्य सौंपे गए थे।अब 54 अलग-अलग जिम्मेदारियां दी जा रही हैं, लेकिन मानदेय (वेतन) वही पुराना है।“कोरोना के दौरान जब लोग घरों से नहीं निकलते थे, तब हम मरीजों की सेवा कर रहे थे।हमें मास्क, ग्लव्स या सैनिटाइज़र तक नहीं मिला।टीबी और कैंसर जैसी बीमारियों से हमारी कई साथी बहनें मर चुकी हैं, और सरकार अब भी चुप है।”

‘महिलाओं का शोषण, सम्मान की बातें सिर्फ दिखावा’

प्रदर्शन में शामिल आशा बहुओं ने कहा —“सरकार महिलाओं के सम्मान की बातें करती है, लेकिन हकीकत कुछ और है।एक तरफ मजदूर को ₹300 मिलते हैं, हम पढ़ी-लिखी महिलाएं हैं फिर भी ₹100 में काम करने को मजबूर हैं।कोई पुरुष 24 घंटे ₹100 में काम कर दिखाए, तब समझे हमारी स्थिति क्या है।”

‘जिनके परिवार नहीं, वो हमारा दर्द नहीं समझ सकते’

आशा बहुओं ने कहा —“हम परिवार वाली महिलाएं हैं। बच्चों की जिम्मेदारी है, खर्चे हैं।जिनके परिवार नहीं हैं, वो नहीं समझ सकते कि ₹3,000 में घर कैसे चलता है।अधिकारी काम तो अनगिनत देते हैं, लेकिन उसकी कीमत कोई नहीं समझता।”“जी चाहता है पेट्रोल डालकर जान दे दूं,” — यह दर्द भरा बयान आंदोलन की पीड़ा को दर्शाता है।

उत्तर प्रदेश में 1.57 लाख आशा कार्यकर्ता सेवा में तैनात

राज्य में लगभग 1,57,596 आशा वर्कर्स तैनात हैं, जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहतगर्भवती महिलाओं की देखभाल, टीकाकरण, परिवार नियोजन और ग्रामीण स्वास्थ्य जागरूकता जैसे कार्यों में अहम भूमिका निभाती हैं।

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