UP Politics: 75 साल में किस जाति के कितने मुख्यमंत्री? ब्राह्मण से OBC तक पूरा राजनीतिक गणित
उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातिगत संतुलन हमेशा से सत्ता की दिशा तय करता रहा है। आज़ादी के बाद लंबे समय तक सूबे की सत्ता पर ब्राह्मण समाज का दबदबा रहा, लेकिन बीते तीन दशकों में यह समीकरण पूरी तरह बदल गया। नारायण दत्त तिवारी के बाद से यूपी को कोई भी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं मिला और अब ब्राह्मण समाज को महज़ एक वोटबैंक के तौर पर देखे जाने की बहस फिर तेज हो गई है।
इसी पृष्ठभूमि में हाल ही में बीजेपी ब्राह्मण विधायकों की बैठक ने यूपी की सियासत में ठंड के मौसम में भी राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी है। इसके बाद एक बार फिर सवाल उठ रहा है कि आखिर 75 साल में यूपी में किस जाति के कितने मुख्यमंत्री बने और किस समाज का कितना राजनीतिक वर्चस्व रहा।
UP CM Caste Data: किस जाति के कितने मुख्यमंत्री बने?
आजादी के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश में कुल 21 मुख्यमंत्री बन चुके हैं। अगर जातिगत आंकड़ों पर नजर डालें, तो साफ होता है कि अलग-अलग दौर में अलग-अलग समाजों का राजनीतिक वर्चस्व रहा है। किसी समय सत्ता एक ही समाज के हाथों में केंद्रित रही, तो बाद के वर्षों में यह समीकरण पूरी तरह बदल गया।
ब्राह्मण समाज की बात करें तो उत्तर प्रदेश को अब तक 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री मिल चुके हैं। इनका कुल शासनकाल करीब 23 वर्षों का रहा। खास तौर पर 1950 से 1989 तक का समय ब्राह्मण नेतृत्व का दौर माना जाता है, जिसे राजनीतिक विश्लेषण में अक्सर “ब्राह्मण काल” कहा जाता है। इस अवधि में ब्राह्मण समाज का सत्ता पर सबसे मजबूत प्रभाव देखने को मिला।
ब्राह्मणों के बाद ठाकुर समाज का राजनीतिक असर सबसे ज्यादा रहा। इस समाज से 5 मुख्यमंत्री बने, जिनका कुल शासनकाल लगभग 17 वर्षों का रहा। ठाकुर समाज के नेताओं को कांग्रेस और बीजेपी—दोनों दलों से मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला, जिससे उनका प्रभाव लंबे समय तक बना रहा।
यादव समाज का उभार खास तौर पर मंडल राजनीति के बाद देखने को मिला। यादव समाज से अब तक 3 मुख्यमंत्री बने हैं, जिनका कुल शासनकाल करीब 13 वर्षों का रहा। इस दौर में यूपी की राजनीति का केंद्र ओबीसी नेतृत्व के इर्द-गिर्द सिमटता चला गया।
इसी तरह वैश्य समाज से भी 3 मुख्यमंत्री बने हैं। इन्हें कांग्रेस और बीजेपी—दोनों ही दलों से सत्ता में आने का मौका मिला, हालांकि इनका कार्यकाल अन्य प्रमुख समाजों की तुलना में अपेक्षाकृत सीमित रहा।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश को अन्य समाजों से भी मुख्यमंत्री मिले हैं। इनमें दलित, जाट, लोध और कायस्थ समाज से एक-एक मुख्यमंत्री बने। खास तौर पर दलित समाज से मुख्यमंत्री बनने को सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से एक बड़ा बदलाव माना जाता है।








