बिहार चुनाव 2025: एनडीए की प्रचंड जीत, महागठबंधन सबसे खराब प्रदर्शन—हार की 5 बड़ी वजहें
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एनडीए ने 202 सीटों के साथ बड़ी जीत हासिल की, जबकि महागठबंधन मात्र 35 सीटों पर सिमट गया। यह प्रदर्शन 2010 के बाद विपक्षी गठबंधन के लिए सबसे कमजोर रहा। आखिर महागठबंधन इतनी बड़ी हार की तरफ कैसे बढ़ा? इसकी पाँच मुख्य वजहें सामने आई हैं।
1. महागठबंधन में आपसी अविश्वास और लगातार अंदरूनी झगड़े
चुनाव अभियान की शुरुआत से ही महागठबंधन में समन्वय की कमी और नेतृत्व को लेकर खींचतान चलती रही।
तेजस्वी नेतृत्व संभालने के पक्ष में थे, लेकिन कांग्रेस इससे सहमत नहीं थी।
कई सहयोगी दल अपने-अपने हितों और हिस्सेदारी पर अडिग रहे।
साझा कैंपेन रणनीति न बन सकी और हर पार्टी अलग-अलग प्रचार करती हुई दिखी।
इसका परिणाम रहा कि कार्यकर्ताओं के स्तर पर वोट ट्रांसफर पूरी तरह फेल हो गया।
2. तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री चेहरा बनाना उल्टा पड़ा
महागठबंधन ने तेजस्वी को सीएम फेस घोषित किया, लेकिन यह रणनीति असरदार साबित नहीं हुई।
तेजस्वी के खिलाफ पुरानी छवि, भ्रष्टाचार और ‘जंगलराज’ से जुड़े आरोपों ने असर डाला।
कई सहयोगी दल इस फैसले से असहमत थे और प्रचार में खुलकर सक्रिय नहीं हुए।
पोस्टरों और मंचों पर एकतरफा पकड़ ने संदेश दिया कि गठबंधन में सत्ता संतुलन नहीं है।
डिप्टी सीएम पद का पूर्व-घोषण विवाद भी सामाजिक समीकरणों को बिगाड़ गया।
3. ‘गांधी मैजिक’ बिहार में नहीं चला—कांग्रेस की कमजोर पकड़
महागठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी कांग्रेस की निष्क्रियता और कमजोर कैंपेनिंग रही।
कांग्रेस की उच्चस्तरीय टीम चुनाव में देर से सक्रिय हुई।
प्रमुख चेहरों की संयुक्त रैलियां बेहद कम रहीं।
SIR यात्रा के दौरान भी कांग्रेस और RJD के बीच तालमेल की कमी दिखाई दी।
कई जगह कांग्रेस के बयान चुनावी माहौल से मेल नहीं खाए।
परिणामस्वरूप, महागठबंधन का नैरेटिव जमीन पर नहीं उतर पाया।
4. SIR मुद्दा समय की बर्बादी साबित हुआ—NDA ने विकास एजेंडा आगे बढ़ाया
विपक्ष ने SIR (वोट अधिकार और वोट चोरी) मुद्दे पर बड़ा नैरेटिव बनाना चाहा, लेकिन यह जनता में पकड़ नहीं बना सका।
SIR पर लंबे समय तक फोकस करने से विपक्षी कार्यकर्ता वास्तविक मुद्दों से भटक गए।
कांग्रेस और गठबंधन के सहयोगियों में SIR को लेकर मतभेद बढ़ गए।
वहीं दूसरी ओर NDA ने महिला वोट बैंक, लाभार्थी योजनाओं, कैश ट्रांसफर, लखपति दीदी जैसे कार्यक्रमों पर जोर देकर ज़मीन मजबूत की।
इस तरह SIR रणनीति विपक्ष के लिए टाइम वेस्ट साबित हुई।
5. सीट बंटवारे में टकराव—दिल्ली से पटना तक संघर्ष, कार्यकर्ता भ्रमित
सीट शेयरिंग को लेकर महागठबंधन में सबसे बड़ा टकराव देखने को मिला।
बातचीत कई दिनों तक रुकी रही।
कई सीटों पर दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतारे।
अनुभवी मध्यस्थों की कमी से विवाद और बढ़ गया।
कार्यकर्ताओं में असंतोष फैल गया और जमीनी स्तर पर एकता टूटती दिखी।
इसका सीधा असर चुनाव परिणामों पर पड़ा और महागठबंधन पूरी तरह बिखरा हुआ दिखा।








