करवा चौथ: परंपरा से आधुनिकता तक का उत्सव
Karwa Chauth 2025 अब केवल सदियों पुरानी परंपरा नहीं रही, बल्कि यह प्रेम, समर्पण और विश्वास का आधुनिक प्रतीक बन गया है।आज यह पर्व पति-पत्नी के रिश्ते में अटूट बंधन और साथ निभाने की भावना को दर्शाता है।फिल्मों और टीवी सीरियलों ने करवा चौथ को रोमांटिक और भावनात्मक उत्सव के रूप में लोकप्रिय बना दिया है।
करवा चौथ का धार्मिक महत्व और कथा
करवा चौथ केवल पति की लंबी आयु के लिए रखा गया व्रत नहीं है, बल्कि इसका उल्लेख नारद पुराण में भी विस्तार से मिलता है।पुराणों के अनुसार, यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी को किया जाता है, जिसे “कर्का चतुर्थी” या “करक चतुर्थी” कहा गया है।इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां भगवान गणेश के कपर्दि स्वरूप की पूजा करती हैं।देवर्षि नारद मुनि ने बताया है कि सभी चतुर्थी तिथियों के स्वामी भगवान श्रीगणेश हैं। इसलिए सौभाग्य, समृद्धि और सफलता की कामना से उनकी पूजा का व्रत धारण किया जाता है।
नारद पुराण में करवा चौथ की पूजा विधि
नारद पुराण में लिखा है कि करवा चौथ के दिन स्त्रियां स्नान कर वस्त्र और आभूषणों से सजती हैं और भगवान गणेश की पूजा करती हैं।वह उनके सामने मिठाई और पकवानों से भरे 10 करवे रखती हैं और मंत्र के साथ गणेशजी को समर्पित करती हैं।फिर रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूरा किया जाता है।यह व्रत 12 या 16 वर्षों तक किया जा सकता है, और इच्छा अनुसार इसे जीवनभर भी रखा जा सकता है।
गणेशजी के कपर्दि स्वरूप की पूजा का अर्थ
करवा चौथ का व्रत “कपर्दि गणेश” के नाम से प्रसिद्ध है।‘करवा’ शब्द का अर्थ है टोंटीदार कलश, जो संपन्नता और जीवनदायिनी शक्ति का प्रतीक है।भगवान गणेश के इस स्वरूप को पूजा में समर्पित दस करवे अर्पित किए जाते हैं — यही इस व्रत का मूल कारण है।
कार्तिक मास का महत्व: सौभाग्य और सिद्धि का महीना
कार्तिक मास को देवी पार्वती और भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का विशेष माह माना गया है।इस महीने में किए गए व्रत और पूजा से सौभाग्य, कीर्ति, संतान, और विजय की प्राप्ति होती है।इसी कारण इस माह में करक चतुर्थी (करवा चौथ), अहोई अष्टमी, धनतेरस, दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा जैसे पर्व आते हैं, जो सौभाग्य और समृद्धि के प्रतीक हैं।
लोककथाओं से जुड़ा करवा चौथ का भावनात्मक पक्ष
लोककथाओं के अनुसार, करवा चौथ व्रत गणेशजी, सती करवा, वीरावती, सावित्री-सत्यवान और द्रौपदी-अर्जुन की कहानियों से जुड़ा हुआ है।इन कथाओं में स्त्रियों के त्याग, प्रेम और समर्पण का भाव झलकता है।यही कारण है कि यह व्रत केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक पर्व बन चुका है।