
नई दिल्ली। जब बात टेस्ट क्रिकेट की होती है तो भारतीय टीम की जीत में जसप्रीत बुमराह की भूमिका को लेकर अक्सर बहस छिड़ जाती है। कई विशेषज्ञों और फैंस का मानना है कि बुमराह की मौजूदगी टीम इंडिया की गेंदबाज़ी को एक अलग ही धार देती है। लेकिन क्या सच में उनके बिना भारत की जीत के चांस कम हो जाते हैं? आंकड़े इस धारणा से थोड़े अलग नजर आते हैं।
हाल ही में इंग्लैंड के पूर्व क्रिकेटर डेविड लॉयड ने भी इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए बुमराह की अहमियत को लेकर सवाल उठाए। लेकिन अगर हम भारत के प्रदर्शन को बुमराह की मौजूदगी और गैरमौजूदगी के आधार पर देखें, तो कहानी कुछ और ही नजर आती है।
बुमराह के साथ और बिना टीम इंडिया का प्रदर्शन:
जसप्रीत बुमराह के साथ खेले गए टेस्ट मैचों में भारत की जीत का प्रतिशत करीब 43% है।
जबकि बिना बुमराह खेले गए मैचों में यह प्रतिशत 50% के आसपास रहा है।
इसका मतलब है कि भारत ने बुमराह की गैरमौजूदगी में भी शानदार प्रदर्शन किया है। इससे यह निष्कर्ष निकालना कि बुमराह के बिना टीम कमजोर हो जाती है, पूरी तरह सही नहीं कहा जा सकता।
बुमराह की भूमिका फिर भी अहम क्यों?
हालांकि आंकड़े भारत की सामूहिक ताकत को दिखाते हैं, लेकिन बुमराह की उपस्थिति का मनोवैज्ञानिक और रणनीतिक असर नकारा नहीं जा सकता। उनकी सटीक यॉर्कर, रिवर्स स्विंग और टेल-एंडर्स को जल्दी निपटाने की क्षमता टीम को बड़ा फायदा देती है — खासकर विदेशी पिचों पर।
भारत की बेंच स्ट्रेंथ बनी ताकत
भारतीय तेज गेंदबाज़ी यूनिट में मोहम्मद शमी, मोहम्मद सिराज, उमेश यादव, शार्दुल ठाकुर और अब अवेश खान जैसे नाम शामिल हैं, जिन्होंने समय-समय पर बुमराह की अनुपस्थिति में ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई है। यही कारण है कि टीम इंडिया का तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमण अब दुनिया में सबसे मजबूत यूनिट्स में गिना जाता है।