कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को Akshay Navami कहा जाता है।यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से शुभ है, बल्कि आयुर्वेदिक महत्व भी रखता है।अक्षय नवमी को आखा नवमी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है — अखंडता और अक्षयता।लेकिन सवाल यह है कि आखिर आंवला को अक्षय फल क्यों कहा गया और इसका इस दिन से क्या संबंध है?
आंवला: अक्षय फल और औषधियों का भंडार
पद्म पुराण के अनुसार, सागर मंथन के समय जब विष की बूंदें छलकीं, तब नशीली और गर्म प्रकृति वाली औषधियाँ उत्पन्न हुईं।वहीं जब अमृत की बूंदें गिरीं, तो शीतलता और पुष्टिकारक गुणों वाली औषधियाँ बनीं —इन्हीं में से एक है आंवला, जिसे त्रिफला, च्यवनप्राश और अनेक औषधियों का आधार माना जाता है।
आंवले के हर रूप में स्वास्थ्य लाभ मिलता है —इसे कच्चा, चटनी, मुरब्बा, अचार या चूर्ण के रूप में सेवन करने पर यह शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाता है।इसी कारण आयुर्वेद में इसे “औषधियों का राजा” कहा गया है।
देवी लक्ष्मी और आंवला पूजा की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवी लक्ष्मी धरती पर आईं और देखा कि लोग दुःखों से पीड़ित हैं।उन्होंने सोचा — ऐसा क्या उपाय हो जिससे मनुष्य को अविनाशी (अक्षय) पुण्य मिले।तभी देवर्षि नारद ने उन्हें सलाह दी कि यदि भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा एक साथ की जाए, तो अक्षय फल प्राप्त होता है।
लेकिन दोनों की पूजा एक साथ कैसे हो? क्योंकि विष्णु तुलसी दल से और शिव बेलपत्र से प्रसन्न होते हैं।इस पर देवी लक्ष्मी ने उपाय खोजा — उन्होंने आंवले की पूजा की,क्योंकि इसमें तुलसी और बेल दोनों के गुण पाए जाते हैं।
देवी लक्ष्मी ने कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को आंवले की पूजा की,जिससे विष्णु और शिव दोनों प्रसन्न हुए और इसे “अक्षय नवमी” का दर्जा मिला।
आंवले का धार्मिक और आध्यात्मिक प्रतीक
आंवले के वृक्ष को तीनों देवताओं का स्वरूप माना गया है —
- फल में ब्रह्मा, 
- तने में विष्णु, 
- और जड़ों में शिव का वास बताया गया है। 
इसीलिए आंवला वृक्ष शैव और वैष्णव परंपरा के बीच संबंध का प्रतीक बन गया है।इसकी पत्तियों को देवी स्वरूप माना गया है,और यही कारण है कि आंवले की पूजा को अक्षय भंडार की पूजा कहा गया है।
 
								 
															 
															 
															
 
															











 
											




