
सावन का महीना हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह भगवान शिव की उपासना का समय होता है, जिसमें श्रद्धालु व्रत, पूजा, और संयम के साथ जीवन जीने की कोशिश करते हैं। इस दौरान मांसाहार से परहेज करने की परंपरा न केवल धार्मिक विश्वासों से जुड़ी है, बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी कारण भी हैं।
धार्मिक कारण: सावन में नॉनवेज से परहेज क्यों ज़रूरी है?
- भगवान शिव की आराधना और सात्विक जीवनशैली
सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दौरान शिव भक्त व्रत रखते हैं और सात्विक भोजन का पालन करते हैं ताकि मन और शरीर दोनों शुद्ध रह सकें। नॉनवेज से परहेज इसी शुद्धता और भक्ति भावना का हिस्सा है।
- मांसाहार को हिंसा से जोड़कर देखा जाता है
हिंदू परंपरा में मांसाहार को हिंसात्मक कृत्य माना जाता है। सावन में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अनुयायी हिंसा और क्रूरता से दूर रहते हैं, जिससे नॉनवेज खाना वर्जित समझा जाता है।
- आत्मशुद्धि, संयम और साधना का समय
यह महीना तप, साधना और संयम का प्रतीक है। ऐसे समय में शरीर को शुद्ध रखने के लिए शुद्ध, हल्का और पौष्टिक सात्विक आहार को प्राथमिकता दी जाती है, ताकि मानसिक और आध्यात्मिक विकास हो सके।
वैज्ञानिक कारण (मौसम और स्वास्थ्य से जुड़ा तर्क)
- मानसून में पाचन क्षमता कमजोर: सावन के दौरान बारिश के कारण हवा में नमी अधिक होती है जिससे पाचन तंत्र धीमा हो जाता है। ऐसे में भारी और चिकनाईयुक्त मांसाहारी भोजन पचाना मुश्किल हो जाता है।
- बीमारियों का खतरा बढ़ता है: मानसून में मांस और मछली जल्दी खराब हो सकते हैं, जिससे फूड पॉइज़निंग, टाइफाइड, जॉन्डिस जैसी बीमारियों का खतरा रहता है।
- पानी और सफाई की समस्या: बारिश के कारण गंदगी और दूषित पानी की समस्या होती है, जिससे मांसाहार में बैक्टीरिया के पनपने की संभावना बढ़ जाती है।
पर्यावरणीय कारण
प्रजनन का मौसम: मानसून के दौरान मछलियों और कई अन्य जीवों का प्रजनन काल होता है। ऐसे में नॉनवेज न खाने से प्राकृतिक जीवन चक्र को संतुलित रखने में मदद मिलती है।
पशु कल्याण: यह समय प्राणीमात्र पर दया और करुणा का भाव रखने का भी प्रतीक माना जाता है, इसलिए मांसाहार से परहेज करना नैतिक रूप से भी उचित समझा जाता है।