राम मंदिर ध्वजारोहण:अयोध्या में भगवा ध्वज फहराया गया, मोहन भागवत बोले—“जो ध्वज कभी अयोध्या में फहरता था, आज फिर अपनी आंखों से देखा”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को अयोध्या के राम मंदिर के शिखर पर धर्मध्वज फहराकर ऐतिहासिक क्षण को साकार किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, RSS प्रमुख मोहन भागवत और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल भी मौजूद रहे।
इस ध्वजारोहण के साथ ही राम मंदिर के औपचारिक रूप से पूर्ण निर्माण की घोषणा हो गई। कार्यक्रम के दौरान मोहन भागवत भावुक नजर आए और उन्होंने इसे “सार्थकता का दिवस” बताया।
मोहन भागवत: “आज उन रामभक्तों की आत्मा को शांति मिली होगी जिन्होंने बलिदान दिया”
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने ध्वजारोहण समारोह में कहा: “आज अयोध्या में राम मंदिर के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वालों की आत्मा को शांति मिल रही होगी। जो ध्वज कभी अयोध्या में फहराता था, आज फिर अपनी आंखों से उसे फहराते देखा—वही शरीर, वही पल।” उन्होंने बताया कि भगवा धर्मध्वज न सिर्फ मंदिर निर्माण का प्रतीक है, बल्कि आस्था, मर्यादा, धर्म और राष्ट्रधर्म का संदेश भी देता है।
🕉 “झंडा एक प्रतीक है, इसे इतनी ऊंचाई तक ले जाने में वर्षों लग गए”
भागवत ने आगे कहा:
“झंडा हमेशा एक सिंबल होता है। इस ध्वज को मंदिर के शिखर तक पहुंचाने में लंबा समय लगा, जैसे मंदिर बनने में लगा।”
“कई लोगों ने इस क्षण को देखने का सपना देखा था, कई ने अपनी जान दी थी। आज ‘रामराज्य’ का झंडा फहरा दिया गया है।”
उन्होंने कहा कि यदि 500 साल नहीं भी गिनें, तो भी मंदिर निर्माण की यह यात्रा 30 साल लंबी संघर्ष-गाथा रही है।
धर्मध्वज पर अंकित मूल्य दुनिया को मार्ग दिखाएंगे—भागवत
मोहन भागवत के अनुसार:
“यह ध्वज केवल कपड़ा नहीं, बल्कि उन बुनियादी मूल्यों का प्रतीक है जो दुनिया को रास्ता दिखाएंगे।
इसमें व्यक्ति, परिवार और पूरी सृष्टि के जीवन को संचालित करने वाले सिद्धांत निहित हैं।
धर्म ही सबको कल्याण देता है।”
केसरिया रंग और चिन्हों का महत्व—रघुवंश का प्रतीक कोविदार वृक्ष
भागवत ने धर्मध्वज पर अंकित चिह्नों की व्याख्या करते हुए कहा:
केसरिया रंग धर्म, त्याग और आत्मबल का प्रतीक है
ध्वज पर रघुवंश की पहचान कोविदार (मंदार) वृक्ष अंकित है
आकार में यह कचनार जैसा दिखता है
यह वृक्ष देव-वृक्ष माना जाता है और अत्यंत उपयोगी है
उन्होंने प्राचीन श्लोक का उल्लेख करते हुए कहा: “छायाम् अन्यत्र कुर्वन्ति, तिष्ठन्ति स्वयम् आतपे।” अर्थात—“वृक्ष स्वयं धूप में खड़े रहते हैं और दूसरों को छाया देते हैं।” भागवत ने इसे सत्पुरुष और धर्म का प्रतीक बताया।








